Sunday, 21 March 2021

हरिहर उदासीन आश्रम

Nandi
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हरिहर उदासीन आश्रम भारत की राजधानी दिल्ली इन्द्रप्रस्थ में रामलीला मैदान के समीप हरिहर चौक, कमला मार्किट पर स्थित है। हरिहर उदासीन आश्रम के संस्थापक दिव्यतपोमूर्ति ब्रह्मलीन संत शिरोमणि बाबा मंगलदास जी उपनाम बाबा हरिहर जी महाराज ने सन्- १८८८ में हरिहर उदासीन आश्रम की स्थापना की थी। इस स्थान पर जनकल्याण एवं अध्यात्म जागरण हेतु, अखण्ड धूना चेतन किया। परम पूज्य बाबा जी महान योग बल एवं सर्वकलाविद्या सम्पन्न थे। इसलिए सफलतायें उनका सदैव चरण चुंबन करती थीं। उनकी धारणा सदैव ही एक ओंकार सच्चिदानन्द परब्रह्म परमेश्वर के ही ध्यान में बनी रहती थी। पूज्यपाद श्री बाबा मंगलदास जी परम योग की खान व अतुलित शक्ति के अक्षय भंडारी थे। बाबा जी ने संसार को भक्ति व ज्ञान का अमृत पिला, माघ वदी दूज २, वि० सम्वत् १९९४ शुभ मंगलवार के दिन इस अनित्य संसार को त्यागा था।

हरिहर उदासीन आश्रम भारत की राजधानी दिल्ली इन्द्रप्रस्थ में रामलीला मैदान के समीप हरिहर चौक, कमला मार्किट पर स्थित है। हरिहर उदासीन आश्रम के संस्थापक महाराज संत शिरोमणि ब्रह्मलीन बाबा मंगलदास जी उपनाम बाबा हरिहर जी महाराज ने सन्-१८८८ में हरिहर उदासीन आश्रम की स्थापना की थी| इस स्थान पर जनकल्याण एवं अध्यात्म जागरण हेतु, धूना चेतन किया।

     परम पूज्य बाबा जी महान योग बल एवं सर्वकलाविद्या सम्पन्न थे| इसलिए सफलतायें उनका सदैव चरण चुंबन करती थीं| उनकी धारणा सदैव ही एक ओंकार सच्चिदानन्द परब्रह्म परमेश्वर के ही ध्यान में बनी रहती थी| पूज्यपाद श्री बाबा मंगलदास जी परम योग की खान व अतुलित शक्ति के अक्षय भंडारी थे|

     बाबा जी ने संसार को भक्ति व ज्ञान का अमृत पिला, माघ वदी दूज २, वि० संवत १९९४ शुभ मंगलवार के दिन इस अनित्य संसार को त्यागा था|

 उदासीन शब्द का अर्थ है-अनासक्त अर्थात् पक्षपातहीन| जो समस्त प्राणियों के कल्याण साधन में लगा रहता है, वही उदासीन है|

     सम्प्रदाय शब्द का अर्थ-सम्यक्, प्रकट प्रदाय का जो 'दाय' है उसे सम्प्रदाय कहते हैं| यानि पूर्ण ब्रह्म का ज्ञान देने वाला जो समूह है, उसी का नाम सम्प्रदाय है|

     उदासीन परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है| प्राचीन धर्मशास्त्रों के अनुसार 'अनादि' ओ३म् ओंकार से ही समस्त सृष्टि की उत्पत्ति मानी गई है| 

     उदासीन परम्परा में प्रथम श्री ब्रह्मा, श्री योगेश्वर शिव, श्री नारायण और श्री सनकादि ऋषि आए| शिव-नारायण दोनों उदासीन मत के आचार्य रहे| अतः हरि-हर की एकता इस सम्प्रदाय में मान्य रही| कलियुग में श्री अविनाशी मुनि के शिष्य और श्री गुरु नानक जी के पुत्र श्रीचन्द्र जी ने मुनि परम्परा स्वीकार की| उनसे उदासीन परम्परा और भी तीव्र गति से आगे चली| उदासीन मुनियों की श्रृंखला में १६४वें मुनि श्री अविनाशी जी हुए| इन्हीं श्री अविनाशी मुनि ने श्रीचन्द्र जी को उदासीन दीक्षा दी| श्रीचन्द्र जी ने उदासीन मत को व्यवस्थित रूप देकर चार धूनों (अग्निकुण्ड) तथा छः बख्शीश की परंपरा स्थापित की|




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